ब्लॉग पर लिखा गया हमारा हर एक लेख अपने आप में निरर्थक सा लग सकता है, कि इतने बड़े सौर मंडल में, इतने बड़े ब्रह्मांड में, ७ अरब जनसंख्या वाले विश्व में, एक छोटे से इंसान का छोटा सा भावनात्मक अनुभव।By वनिता कासनियां पंजाब ? अमेरिका या किसी यूरोपीय देश के मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के किसी सर्वर में “बीप-बीप” की आवाज़ के साथ सहेज दी गई।यह अनुभव इस ब्रह्मांड के किसी कोने में पड़ी हुई है।पर यह छोटा सा काम, एक यूँ हीं लिख दिया गया शब्दों का समूह, कल्पना कीजिए कि धरती पर सभ्यता समाप्त हो जाए और कोई एलिएन सभ्यता आए, सर्वर में पड़े डेटा को निकाल कर यह खोज करे कि ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं थे, जीते-जागते लोग यहाँ थे जिन्होंने कविताएँ, कहानियाँ, शायरी और न जाने क्या-क्या लिखा है।तो बटरफ़्लाई इफ़ेक्ट एक छोटे से घटना, मासूम घटना, को वृहत समय के पैमाने पर बड़े बदलाव को जन्म देने के बारे में है।उदाहरण के लिए लोरेंट्ज जिन्होंने इस प्रभाव को पहली बार खोजा, एक मेन्फ़्रेम कम्प्यूटर की मदद से मौसम की भविष्यवाणी करना चाहते थे उन्होंने हीट फ़्लो के अवकलन समीकरण के मोडल बनाए और सिस्टम में डेटा फ़ीड किया ,डेटा का प्रिंटआउट ले कर वे दुबारा सिम्यूलेशन को लम्बे समय तक रन करना चाहते थे ।जैसे ही उन्होंने प्रिंट डेटा को उसी मोडल में फिर से फ़ीड किया, वे अवाक रह गए क्योंकि कम्प्यूटर इस बार बिल्कुल नए मौसम पैटर्न की भविष्यवाणी कर रहा था।बाद में उन्होंने देखा कि प्रिंटर शुरुआती डेटा के दशमलव के स्थानों को काट दे रहा था उदाहरण के लिए ०.५०३६७९८ को प्रिंटर काट कर ०.५०३ कर दे रहा था, और इस छोटे से परिवर्तन की वजह से पूरा मौसम का पैटर्न ही बदल जा रहा था ।उत्सुकतावश उन्होंने दो डेटा बिंदुओं में हलके से परिवर्तन के साथ सिम्यूलेशन को फिर से रन किया और पाया कि फ़ेज़ स्पेस में दोनों बिंदु शुरू में नज़दीक होते हुए भी बिल्कुल दूर चले जा रहे थे ।उन्हें कुछ ऐसा पैटर्न दिखाई दिया :फिर ऐसा :तो कभी ऐसा :कहने का अर्थ है कि डेटा पोईँट के प्रारंभिक बिंदु में हल्का सा परिवर्तन फ़ेज़ स्पेस में उनके गति को पूर्णतः बदल दे रहा था।तो हर एक केओटिक सिस्टम, यानी ऐसे सिस्टम जो बटरफ़्लाई प्रभाव दिखाते हैं, का यह एक गुण है “प्रारम्भिक स्थिति पर अतिसंवेदनशील निर्भरता” इतनी संवेदनशील की यदि दो डेटा पोईँट के बीच प्रारम्भ में सिर्फ़ ०.००००१ सेंटीमीटर की दूरी है तो बाद में यह दूसरी बढ़ कर १० सेंटीमीटर या अनंत भी हो सकती है जबकि वे दोनों पोईँट एक ही मोडल में फ़िट किए गए हैं।तो बटरफ़्लाई प्रभाव का जन्म इसी “लॉरेंट्ज़ अट्ट्रैक्टर” नामक मोडल से आया जहाँ यह बटरफ़्लाई शब्द इस तरफ़ इशारा करता है कि बटरफ़्लाई के पंख हिलने से यदि हवा के दबाव में एक यूनिट का भी परिवर्तन आया तो कुछ समय या महीनों बाद यह प्रशांत महासागर में अति निम्न दबाव का का क्षेत्र यानी टॉर्नेडो भी पैदा कर सकता है।यहाँ “अट्रैक्टर” से अर्थ चित्र में दिख रहे उन दो (या एक) बिंदुओं से है जिनके इर्द गिर्द डेटा पोईंट्स चक्कर लगा रहे होते हैं, पुनः -पुनः वापिस आते हैं।इनके चक्कर लगाने के कुछ रास्ते यानी “ओर्बिट्स” स्थायी हैं मतलब अनंत की ओर नहीं भाग जाते, अट्ट्रैक्टर के जद में ही रहते हैं, और कुछ ऑर्बिट अस्थायी हैं, जहां डेटा पाइंट्स अनंत मान ले कर अट्ट्रैक्टर से हमेशा के लिए दूर चले जाते हैं।सौर मंडल जैसे केआटिक निकाय में इसका अर्थ है हो सकता है कि सौर मंडल में कोई ग्रह अपनी परिक्रमा कक्ष छोड़ कर अनंत अंतरिक्ष में विलीन हो जाए।या ओपरेशन टेबल पर पड़े मरीज़ के दिल के डेटा के परिप्रेक्ष्य में अस्थायी ऑर्बिट में जाने का अर्थ है “कार्डियक ऐरिथ्मिया” दिल असामान्य रूप से तेज़ी से धड़कना शुरू हो जाए ।क्योंकि मानव हृदय भी एक केआटिक सिस्टम है यह साबित हो चुका है।अभी तक के लेख से आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि हालाँकि यह प्रभाव मौसम विज्ञान के संदर्भ में पहली बार खोजा गया पर इसके उपयोग मेडिकल फ़ील्ड से ले कर एंजिनियरिंग, हाईड्रोडायनामिक्स, ऐस्ट्रनामि, संगीत, कला, जैसे कई क्षेत्र में हैं।आख़िर में आप ने देखा होगा कि नल को धीरे से चालू करने पर पानी पहले तो सीधी रेखा में, फिर आड़ी तिरछी, और एक दम से खोलने पर केआटिक पैटर्न में बदल जाता है, यह पानी के कणों के गति में स्टेबल और अनस्टेबल ऑर्बिट जैसे पैटर्न की तरफ़ इशारा करता है।फ़ेज़ स्पेस में प्रारम्भ में अत्यंत नज़दीक दो बिंदुओ के साथ क्या हो सकता है इसके लिए यह विडियो देखिए :,यही प्रारम्भिक स्थित के प्रति अतिसंवेदनशीलता है , यानी शुरू में तीसरे अक्ष पर सिर्फ़ ०.०५ यूनिट की दूरी है लेकिन बाद में डेटा बिल्कुल अलग स्टेबल ऑर्बिट में होते हैं , कई बार अलग अट्ट्रैकर की तरफ़ आकर्षित होते हुए देखे जा सकते हैं ।
ब्लॉग पर लिखा गया हमारा हर एक लेख अपने आप में निरर्थक सा लग सकता है, कि इतने बड़े सौर मंडल में, इतने बड़े ब्रह्मांड में, ७ अरब जनसंख्या वाले विश्व में, एक छोटे से इंसान का छोटा सा भावनात्मक अनुभव।
अमेरिका या किसी यूरोपीय देश के मल्टीस्टोरी बिल्डिंग के किसी सर्वर में “बीप-बीप” की आवाज़ के साथ सहेज दी गई।यह अनुभव इस ब्रह्मांड के किसी कोने में पड़ी हुई है।
पर यह छोटा सा काम, एक यूँ हीं लिख दिया गया शब्दों का समूह, कल्पना कीजिए कि धरती पर सभ्यता समाप्त हो जाए और कोई एलिएन सभ्यता आए, सर्वर में पड़े डेटा को निकाल कर यह खोज करे कि ब्रह्मांड में हम अकेले नहीं थे, जीते-जागते लोग यहाँ थे जिन्होंने कविताएँ, कहानियाँ, शायरी और न जाने क्या-क्या लिखा है।
तो बटरफ़्लाई इफ़ेक्ट एक छोटे से घटना, मासूम घटना, को वृहत समय के पैमाने पर बड़े बदलाव को जन्म देने के बारे में है।
उदाहरण के लिए लोरेंट्ज जिन्होंने इस प्रभाव को पहली बार खोजा, एक मेन्फ़्रेम कम्प्यूटर की मदद से मौसम की भविष्यवाणी करना चाहते थे उन्होंने हीट फ़्लो के अवकलन समीकरण के मोडल बनाए और सिस्टम में डेटा फ़ीड किया ,डेटा का प्रिंटआउट ले कर वे दुबारा सिम्यूलेशन को लम्बे समय तक रन करना चाहते थे ।
जैसे ही उन्होंने प्रिंट डेटा को उसी मोडल में फिर से फ़ीड किया, वे अवाक रह गए क्योंकि कम्प्यूटर इस बार बिल्कुल नए मौसम पैटर्न की भविष्यवाणी कर रहा था।
बाद में उन्होंने देखा कि प्रिंटर शुरुआती डेटा के दशमलव के स्थानों को काट दे रहा था उदाहरण के लिए ०.५०३६७९८ को प्रिंटर काट कर ०.५०३ कर दे रहा था, और इस छोटे से परिवर्तन की वजह से पूरा मौसम का पैटर्न ही बदल जा रहा था ।
उत्सुकतावश उन्होंने दो डेटा बिंदुओं में हलके से परिवर्तन के साथ सिम्यूलेशन को फिर से रन किया और पाया कि फ़ेज़ स्पेस में दोनों बिंदु शुरू में नज़दीक होते हुए भी बिल्कुल दूर चले जा रहे थे ।उन्हें कुछ ऐसा पैटर्न दिखाई दिया :
फिर ऐसा :
तो कभी ऐसा :
कहने का अर्थ है कि डेटा पोईँट के प्रारंभिक बिंदु में हल्का सा परिवर्तन फ़ेज़ स्पेस में उनके गति को पूर्णतः बदल दे रहा था।
तो हर एक केओटिक सिस्टम, यानी ऐसे सिस्टम जो बटरफ़्लाई प्रभाव दिखाते हैं, का यह एक गुण है “प्रारम्भिक स्थिति पर अतिसंवेदनशील निर्भरता” इतनी संवेदनशील की यदि दो डेटा पोईँट के बीच प्रारम्भ में सिर्फ़ ०.००००१ सेंटीमीटर की दूरी है तो बाद में यह दूसरी बढ़ कर १० सेंटीमीटर या अनंत भी हो सकती है जबकि वे दोनों पोईँट एक ही मोडल में फ़िट किए गए हैं।
तो बटरफ़्लाई प्रभाव का जन्म इसी “लॉरेंट्ज़ अट्ट्रैक्टर” नामक मोडल से आया जहाँ यह बटरफ़्लाई शब्द इस तरफ़ इशारा करता है कि बटरफ़्लाई के पंख हिलने से यदि हवा के दबाव में एक यूनिट का भी परिवर्तन आया तो कुछ समय या महीनों बाद यह प्रशांत महासागर में अति निम्न दबाव का का क्षेत्र यानी टॉर्नेडो भी पैदा कर सकता है।
यहाँ “अट्रैक्टर” से अर्थ चित्र में दिख रहे उन दो (या एक) बिंदुओं से है जिनके इर्द गिर्द डेटा पोईंट्स चक्कर लगा रहे होते हैं, पुनः -पुनः वापिस आते हैं।
इनके चक्कर लगाने के कुछ रास्ते यानी “ओर्बिट्स” स्थायी हैं मतलब अनंत की ओर नहीं भाग जाते, अट्ट्रैक्टर के जद में ही रहते हैं, और कुछ ऑर्बिट अस्थायी हैं, जहां डेटा पाइंट्स अनंत मान ले कर अट्ट्रैक्टर से हमेशा के लिए दूर चले जाते हैं।
सौर मंडल जैसे केआटिक निकाय में इसका अर्थ है हो सकता है कि सौर मंडल में कोई ग्रह अपनी परिक्रमा कक्ष छोड़ कर अनंत अंतरिक्ष में विलीन हो जाए।
या ओपरेशन टेबल पर पड़े मरीज़ के दिल के डेटा के परिप्रेक्ष्य में अस्थायी ऑर्बिट में जाने का अर्थ है “कार्डियक ऐरिथ्मिया” दिल असामान्य रूप से तेज़ी से धड़कना शुरू हो जाए ।
क्योंकि मानव हृदय भी एक केआटिक सिस्टम है यह साबित हो चुका है।
अभी तक के लेख से आपको अंदाज़ा हो गया होगा कि हालाँकि यह प्रभाव मौसम विज्ञान के संदर्भ में पहली बार खोजा गया पर इसके उपयोग मेडिकल फ़ील्ड से ले कर एंजिनियरिंग, हाईड्रोडायनामिक्स, ऐस्ट्रनामि, संगीत, कला, जैसे कई क्षेत्र में हैं।
आख़िर में आप ने देखा होगा कि नल को धीरे से चालू करने पर पानी पहले तो सीधी रेखा में, फिर आड़ी तिरछी, और एक दम से खोलने पर केआटिक पैटर्न में बदल जाता है, यह पानी के कणों के गति में स्टेबल और अनस्टेबल ऑर्बिट जैसे पैटर्न की तरफ़ इशारा करता है।
फ़ेज़ स्पेस में प्रारम्भ में अत्यंत नज़दीक दो बिंदुओ के साथ क्या हो सकता है इसके लिए यह विडियो देखिए :
यही प्रारम्भिक स्थित के प्रति अतिसंवेदनशीलता है , यानी शुरू में तीसरे अक्ष पर सिर्फ़ ०.०५ यूनिट की दूरी है लेकिन बाद में डेटा बिल्कुल अलग स्टेबल ऑर्बिट में होते हैं , कई बार अलग अट्ट्रैकर की तरफ़ आकर्षित होते हुए देखे जा सकते हैं ।
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