🌺बचपन-रक्षा : परम धर्म 🌺 (बाल-श्रम निषेध दिवस विशेष) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब अरे सुन ओ इंसान! न बन हैवान! नहीं हो सकता कभी तू भगवान, सुधरेगा तू ,बस समय के प्रहार से, समझेगा तू, अपनों की दुत्कार से! ज़रा सोच! ***** नन्हें नौनिहालों की कातर दृष्टि, तुझे क्या नहीं बेध देती भीतर तक इन स्वर्ण- रजत के कवच पहनकर क्या इतना निर्मम हो सकता है तू? ये फूल! ***** सुविकसित होने दो , इन्हें पढ़ने दो! गुण और सुवासित होने दो इनके, ये देश चला देंगे इक दिन, दौड़ेंगे! होने दो सुगंधित, पलने दो, बढ़ने दो! देखो तुम! ***** इनकी कोमलता, कैसे कोमल देह-तंतु ये बचपन हैं, तेरे-मेरे, न इनको मसल! ये मानव के शावक हैं, कोई जंतु नहीं, अधिकार न इनके छीनो अब, तुम शोषक! अब जगो! ***** मजदूरी बच्चों से, सौ सौ पापों-सम मानो, पोषण दो, सुविधा दो, दो खेल का सामान! रंग भरो, उनके जीवन में, भरो ज्ञान- विज्ञान, यही तुम्हारा धर्म गुनो, इसी से है पहचान | मानव की! *****